वक़्त की तरह दबे पाँव ये कौन आया है
मैंने अँधेरा जिसे समझा वो क़बा किसकी थी
आँसुओं से ही सही भर गया दामन मेरा
हाथ तो मैं ने उठाये थे दुआ किसकी थी
मेरी आहों की ज़बां कोई समझता कैसे
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी...
मैंने अँधेरा जिसे समझा वो क़बा किसकी थी
आँसुओं से ही सही भर गया दामन मेरा
हाथ तो मैं ने उठाये थे दुआ किसकी थी
मेरी आहों की ज़बां कोई समझता कैसे
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी...
बहुत सुंदर रचना ,दिल भर आया
ReplyDeleteबहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत
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