मन्नाओं की फितरत ही कुछ ऐसी है...
ना समझा पाया, ना समझ सका कोई...
ये जुनून कब जीने लगता है ज़िद के लिए...
पैरों से घसीट कर लकीरें बनाना रेत में...
आसां सा हल लगता है परेशानी के लिए...
हर ख्वाहिश को हकीकत के लिबास में पाने की चाहत...
कि कोई भी मचल जाता है, थाली के पानी में रखे चाँद को पाने के लिए !!
ना समझा पाया, ना समझ सका कोई...
ये जुनून कब जीने लगता है ज़िद के लिए...
पैरों से घसीट कर लकीरें बनाना रेत में...
आसां सा हल लगता है परेशानी के लिए...
हर ख्वाहिश को हकीकत के लिबास में पाने की चाहत...
कि कोई भी मचल जाता है, थाली के पानी में रखे चाँद को पाने के लिए !!
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