Thursday, 29 March 2012

मन्नाओं की फितरत ही कुछ ऐसी है...
ना समझा पाया, ना समझ सका कोई...
ये जुनून कब जीने लगता है ज़िद के लिए...
पैरों से घसीट कर लकीरें बनाना रेत में...
आसां सा हल लगता है परेशानी के लिए...
हर ख्वाहिश को हकीकत के लिबास में पाने की चाहत...
कि कोई भी मचल जाता है, थाली के पानी में रखे चाँद को पाने के लिए !!

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